बाबा आम्टे विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, मुख्यत: कुष्ठरोगियों की सेवा के लिए विख्यात ‘परोपकार विनाश करता है, कार्य निर्माण करता है’ के मूल मंत्र से उन्होंने हजारों कुष्ठरोगियों को गरिमा और साथ ही बेघर तथा विस्थापित आदिवासियों को आशा की किरण दिखाई दी।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल गए। नेताओं के मुकदमें लड़ने के लिए उन्होंने अपने साथी वकीलों को संगठित किया और इन्ही प्रयासों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हे गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वरोरा में कीड़ों से भरे कुष्ठ रोगी को देखकर उनके जीवन की धारा बदल गई। उन्होंने अपना वकालती चोगा और सुख-सुविधा वाली जीवन शैली त्यागकर कुष्ठरोगियों और दलितों के बीच उनके कल्याण के लिए काम करना प्रारंभ कर दिया।
बाबा आम्टे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया।
9 फ़रवरी 2008 को उनका निधन हो गया। हमारी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।